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| कार्यक्रम में विवि के शिक्षक, स्टाफ और स्टूडेंट्स |
स्वतंत्रता आंदोलन की 'आत्मा' बना 'वंदे मातरम्'
रांची कृषि महाविद्यालय के सभागार में आयोजित मुख्य कार्यक्रम के मुख्य अतिथि एवं बीएयू के कुलपति डॉ. एस.सी. दुबे ने 'वंदे मातरम्' के ऐतिहासिक महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि, "यह गीत आज भी पीढ़ियों को समर्पण, ईमानदारी और राष्ट्रप्रेम के साथ कार्य करने के लिए प्रेरित करता है।"
स्वागत भाषण में, छात्र कल्याण निदेशक डॉ. बी.के. अग्रवाल ने इस गीत को "केवल एक गीत नहीं, बल्कि भारत की आत्मा" बताते हुए कहा, "यह वह पुकार थी जिसने करोड़ों भारतीयों के हृदय में स्वतंत्रता की ज्वाला प्रज्वलित की।" उन्होंने छात्रों से अपने आचरण, समर्पण और मूल्यों के माध्यम से राष्ट्र की गरिमा को बनाए रखने का संकल्प लेने का आह्वान किया।
एक ऐतिहासिक तथ्य...
डॉ. अग्रवाल ने बताया कि 'वंदे मातरम्' की रचना बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय ने 1870 के दशक में की थी, जिसे बाद में उनके प्रसिद्ध उपन्यास 'आनंदमठ' में शामिल किया गया। यह रचना शीघ्र ही स्वराज का मंत्र, देशभक्ति का प्रतीक और मातृभूमि के प्रति भक्ति की अभिव्यक्ति बन गई।
सामूहिक गायन से गूंज उठा परिसर
इस ऐतिहासिक समारोह में कृषि संकाय के डीन डॉ. डी.के. शाही, निदेशक अनुसंधान डॉ. पी.के. सिंह, सहित शिक्षकगण, अधिकारी और बड़ी संख्या में छात्र-छात्राएँ उपस्थित थे, जिसने आयोजन को यादगार बना दिया।
विवि के अन्य महाविद्यालयों में भी उत्साह चरम पर
* पशुचिकित्सा संकाय : डीन डॉ. एमके गुप्त के मार्गदर्शन में कार्यक्रम हुआ।
* कृषि अभियंत्रण महाविद्यालय : एसोसिएट डीन प्रो. डीके रूसिया के मार्गदर्शन में हुआ आयोजन।
* वानिकी संकाय : विश्वविद्यालय के सांस्कृतिक समन्वयक डॉ. अरुण कुमार तिवारी के संयोजन में कार्यक्रम हुआ।
सभी कृषि महाविद्यालयों में कार्यक्रम का समापन सामूहिक रूप से 'वंदे मातरम्' के गायन के साथ हुआ, जिससे पूरा सभागार देशभक्ति की भावना और ऊर्जा से गूंज उठा। बीएयू का यह आयोजन राष्ट्रीय चेतना और युवा शक्ति में देशप्रेम के संचार का सफल उदाहरण बना।

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