GA4-314340326 विधायक सुरेश बैठा के बाद पंचायत प्रतिनिधियों ने की रिनपास में वित्तीय व प्रशासनिक गड़बड़ियों की जांच की मांग

विधायक सुरेश बैठा के बाद पंचायत प्रतिनिधियों ने की रिनपास में वित्तीय व प्रशासनिक गड़बड़ियों की जांच की मांग

फोटो : रिनपास का फाइल फोटो। (KANKE NEWS,RANCHI)। रांची तंत्रिका मनोचिकित्सा एवं संबद्ध विज्ञान संस्थान (रिनपास) एक बार फिर से वित्तीय और प्रशासनिक गड़बड़ियों को लेकर सवालों के घेरे में है। स्वयं सत्ताधारी दल के विधायक सुरेश कुमार बैठा संस्थान में टेंडर और इसके बाद चल रहे कार्यों की गुणवत्ता में पाई गई गड़बड़ियों को लेकर काफी मुखरता से सवाल उठा रहे हैं। इसके पहले वे संस्थान में सुरक्षा सेवा दे रही समानता सिक्योरिटी एजेंसी द्वारा सुरक्षा प्रहरियों तथा सुपरवाइजरों को काफी कम वेतन तथा पीएफ राशि का भुगतान करने, बोनस और ग्रेच्युटी राशि आदि का भुगतान नहीं करने को लेकर भी सवाल उठा चुके हैं। उन्होंने इन गड़बड़ियों की व्यापक जांच कराते हुए कार्रवाई की मांग भी विभागीय मंत्री से की है। इधर उनके बाद कांके पश्चिम के मुखिया सुमित सुरीन , जिप सदस्य किरण देवी, समाजसेवी विवेक प्रताप सिंह आदि ने संस्थान में दिसंबर 2024 में निकाले गए शॉर्ट टर्म टेंडर तथा गैर जरूरी निर्माण और मरम्मत कार्य के नाम पर करोड़ों की वित्तीय अनियमितता करने का आरोप लगाते हुए विकास आयुक्त सह अध्यक्ष प्रबंधकारिणी समिति रिनपास को पत्र देकर वर्तमान निदेशक डॉ जयति सिमलाई के कार्यकाल की जांच कराने की मांग की है। उन्होंने लिखा है कि इनके कार्यकाल में लगातार प्रशासनिक एवं वित्तीय गड़बड़ियां की जा रही हैं । उन्होंने भी समानता सिक्योरिटी मामले में कोई कारवाई नहीं करने, उसको नर्सिंग मैनपावर आपूर्ति सेवा का कार्य आवंटित करने तथा पुराने एवं बिना उपयोग वाले भवनों के जीर्णोद्धार एवं मरम्मत के नाम पर अफसरों और चहेते ठेकेदारों द्वारा कमाई करने का मुद्दा उठाया है। नियम विरुद्ध ढंग से कुछ चहेते कर्मियों को प्रोन्नति देने पर भी सवाल उठाया है। 18 साल से नहीं है स्थायी निदेशक : संस्थान इस वर्ष अपने स्थापना का शताब्दी समारोह मनाएगा। लेकिन संस्थान का अपना स्थायी निदेशक ही नहीं है। विगत 18 साल से सरकार इसको भरने में नाकामयाब रही है। बड़ा सवाल यह है कि स्थायी निदेशक की नियुक्ति नियमावली बन जाने के बाद भी इसको भरने के लिए पद का विज्ञापन क्यों नहीं निकाला गया है। अहर्ता के अनुसार मनोचिकित्सा शिक्षा एवं संबद्ध विज्ञान विषय का प्रोफेसर ही निदेशक हो सकता है। ऐसे में गैर प्रोफेसर जो अहर्ता नहीं रखती हैं को प्रभारी निदेशक क्यों बना कर रखा गया है। इसका जवाब तो सरकार ही दे सकती है। जबकि मौजूदा प्रभारी की संस्थान में नियुक्ति पर भी पहले से सवाल खड़े हैं। उसकी जांच को भी गतालखाते में डाल दिया गया है। बताते चलें प्रभारियों के द्वारा सार्थक और गंभीर पहल के अभाव में संस्थान के स्वीकृत लगभग 650 पदों में से 450 पद रिक्त पड़े हैं। इनमें नर्सिंग पदाधिकारी, वार्ड अटेंडेंट सहित अन्य पद शामिल हैं। इस कारण यहां इलाजरत मरीजों की देखभाल और सेवाओं, शिक्षा एवं शोध पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। लेकिन स्वास्थ्य विभाग खुले हाथ से 70- 80 वर्ष पुराने वार्डों और भवनों के मरम्मत के नाम पर करोड़ों की राशि खर्च कर रहा है।

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