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श्रद्धाुलुओं का पैर घोती एलिजाबेथ |
हर वर्ष मैं भी माता का दर्शन करने जाती थी। इस वर्ष किसी कारण वस नही जा सका। इस लिए मैं यही से माता के दर्शन कर लौटे सदस्यों से आशीर्वाद ले रही हूं। वैसे तो श्रद्धा कोई संकल्प भी नहीं है और न श्रद्धा कोई ठहरी हुई घटना है, यह तो गतात्मक है, प्रवाहमान है और सतत ब्रह्म भाव है। यह होती है, तो होती है, नहीं होती तो नहीं होती है। कोई चेष्टा करके श्रद्धा नहीं पा सका, श्रद्धा तो उपलब्धि ही है, श्रद्धा निर्णय नहीं है, श्रद्धा अंधविश्वास भी नहीं है, श्रद्धा सजगता है। यह तो हृदय की आंख के खुलने का नाम है। यह एक आंतरिक भाव है। इस मौके पर संतोष साव, कार्तिक कोईरी, मिथिल चौधरी, लखीराम कोईरी, बर्षा रॉय, झूमा चौधरी, निशा मल्लिक आदि उपस्थित थे।
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