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रिनपास का प्रशासनिक भवन। |
वर्ष 2007 तक काफी सुदृढ़ थी व्यवस्था
वर्ष 2007 तक इसकी व्यवस्था भी काफी सुदृढ़ थी। यहां मरीजों को ओपीडी में निःशुल्क दवाएं दी जाती थीं। कम्युनिटी आउटरीच प्रोग्राम के तहत संस्थान के मनोचिकित्सक विभिन्न दूर दराज के गांव में जाकर मानसिक स्वास्थ्य संबंधी मरीजों का इलाज करते थे। किंतु 2007 अगस्त के बाद से स्थाई निदेशक नहीं होने तथा पुनः इसकी स्वायत्तता पर प्रश्न खड़ा करते हुए स्वास्थ्य विभाग का अनावश्यक हस्तक्षेप बढ़ने से इसकी स्थिति एक बार फिर से काफी दयनीय हो गई है। प्रभारी निदेशक पद पर बने रहने के लिए स्वास्थ्य विभाग के पास अपनी सारी शक्तियों को सरेंडर करते गए। आज हालत यह है कि रिनपास में निर्माण, मरम्मत आदि के कार्य से लेकर तथा बिल भुगतान तक विभाग कर रहा है। 2005 के बाद से नियुक्तियां तक नहीं हुई हैं। नियुक्ति का अधिकार जो सर्वोच्च न्यायालय ने दिया था, उसको जेपीएससी तथा जेएसएससी को दे दी गई है। इन सबके कारण रिनपास जैसा अग्रणी संस्थान आज फिर से भ्रष्टाचार, भाई, भतीजावाद सहित अन्य समस्याओं के गहरे भंवरजाल में उलझ गया है। यहां स्वीकृत कुल 652 पदों में केवल 137 सरकारी कर्मी बचे हैं। वैसे लोग जो निदेशक की प्राध्यापक होने की न्यूनतम अहर्ता भी पूरी नहीं करते को प्रभारी निदेशक बना कर वर्षों से स्वास्थ्य विभाग परोक्ष रूप से लालफीताशाही चला रहा है। कर्मचारियों और चिकित्सकों की घोर कमी के कारण मरीजों की देखभाल पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। 10 - 15 हजार से लेकर 25000 तक प्रतिमाह पर आउटसोर्सिंग एजेंसी के तहत कार्य करने वाले सफाईकर्मी, सुरक्षाकर्मी और नर्स कितने मनोयोग से उनकी देखभाल करेंगे इसकी सहज ही कल्पना की जा सकती है। वे भी वर्षों से अपने स्थाई नौकरी की आशा में सेवा भाव के साथ कार्य में जुट हैं। कांके विधायक सुरेश कुमार बैठा और प्रखंड अध्यक्ष संजर खान बराबर उनकी सेवा समायोजित करने की मांग कर रहे हैं, ताकि मरीजों की देखभाल में गुणात्मक सुधार आ सके।
सीएम के आगमन से बंधी है संस्थान के पुनरुत्थान की उम्मीद
शताब्दी समारोह में सीएम हेमंत सोरेन के आने से संस्थान के पुनरुत्थान की उम्मीद पुनः जगती दिख रही है। वहीं स्वयं एक चिकित्सक होने से राज्य के स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर इरफान अंसारी भी संस्थान को लेकर काफी संवेदनशील हैं । ऐसे में संस्थान को जल्द एक स्थाई निदेशक मिलने की संभावना बन रही है। साथ ही अन्य सभी रिक्त पदों को भी यदि रिनपास के द्वारा भरवाया जाए तो बदलाव नजर आने लगेगा। बताते चलें प्रतिवर्ष लगभग एक लाख लोग रिनपास में इलाज के लिए आते हैं। नए विभाग खोलना तब सार्थक और सफल होगा जब उसमें पर्याप्त संख्या में प्रशिक्षित मानवबल होगा। संस्थान में मनोचिकित्सा में एमडी, क्लीनिकल साइकोलॉजी और साइकाइट्रिक सोशल वर्क जैसे विषय में एमफिल की डिग्री देकर मेंटल हेल्थ प्रोफेशनल्स तैयार कर रहा है। लेकिन साइकियाट्री नर्सिंग सहित अधिकांश विभागों में पर्याप्त शिक्षक नहीं हैं। ऐसे में राज्य सरकार ने रिनपास को जिस प्रकार 38 करोड़ की राशि देकर इसके पुराने संरचना को मजबूत और सुंदर बनाया है, उसी प्रकार टीचिंग, रिसर्च और पेशेंट केयर के लिए दक्ष मानव बल भी जल्द उपलब्ध करा कर इसको राष्ट्रीय फलक पर अपनी पहचान को दोबारा स्थापित करने में मदद कर सकती है।
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