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सुलूमजुड़ी में बैठक के बाद अपनी मांगों के समर्थन में नारेबाजी करते लोग। |
Silli (Ranchi): कुड़मी समाज के लोग एक बार फिर आर-पार के मूड में हैं। इसके लिए वे 20 सितंबर से फिर रेल टेका (रेल रोको) आंदोलन शुरू करेंगे। इसके तहत झारखंड, पश्चिम बंगाल और ओडिशा में 100 स्टेशनों पर रेलवे का परिचालन ठप कराया जाएगा। दरअसल, यह समाज लंबे समय से अनुसूचित जानजाति की श्रेणी में में शामिल करने की मांग कर रहा है। 20 सितंबर को प्रस्तावित रेल टेका आंदोलन की सफलता को लेकर आदिवासी कुड़मी समाज ने मंगलवार को सिल्ली के सुलूमजुडी स्तिथ दा विलेज रिसोर्ट में बैठक की। इसके पीछे की वजह को लेकर झारखंड, बंगाल और ओडिशा कुड़मी समाज के संरक्षक दीपक पुनियार ने कहा कि कुड़मी समाज ब्रिटिश राज में 1931 की लिस्ट में अनुसूचित जनजाति के रूप में शामिल था, 1950 तक अनुसूचित जनजाति यानी कि एसटी के रूप में ही जाने जाते थे।
हम किसी पहचान के मोहताज नहीं
उन्होंने कहा कि लेकिन, इसके बाद उन्हें इस कैटेगिरी से हटाकर ओबीसी में शामिल कर दिया गया है, हम राज्य व केंद्र सरकार को बताना चाहते हैं कि हम पहचान के मोहताज नहीं हैं। हमारी मांग पर विचार नहीं किया गया, तो अभी हम झारखंड के 40, बंगाल के 30 और ओडिशा के 20 स्टेशन में रेल रोकने का होमवर्क किया है आने वाला समय सभी स्टेशनों में रेल को रोका जाएगा। इसके अलावा उमेश महतो फुनसू महतो, राजू महतो, नीतीश महतो आदि ने कहा कि समाज की ओर से घोषित रेल टेका, डहर छेका आंदोलन मुरी में ऐतिहासिक होगा। वक्ताओं ने कहा कि कुड़मी समाज को एसटी सूची में शामिल करने की मांग काफी पुरानी है, केंद्र सरकार इस संबंध में संसद में बिल लाकर पारित करे।
आदिवासी नहीं स्वार्थी लोग कर रहे विरोध: धनपति
धनपति महतो लगातार जनसंपर्क कर लोगों से अपील कर रहे हैं कि 20 सितंबर को प्रस्तावित रेल टेको आंदोलन को ऐतिहासिक बनाने के लिए लाखों की संख्या में शामिल हों। महतो ने कहा कि कुछ स्वार्थी लोग आंदोलन का विरोध पर भ्रम फैला रहे हैं। किसी भी आदिवासी समाज के लोग हमारी मांगों का विरोध नहीं कर रहे हैं। उन्हें पता है कि कुड़मी आदिवासी भाई-भाई ये हम नहीं कह रहे हैं दिशुम गुरु शिबू सोरेन, डॉ. रामदयाल मुंडा आदि कह चुके हैं। छोटानागपुर पठारी क्षेत्र के कुड़मी और आदिवासी का सरल स्वभाव और रीति रिवाज एक जैसा है, तभी तो लोग दशकों से कुड़मी समुदाय को ढंड़ कहते हैं यानी ढंड सांप, जिसमें जहर नहीं होता है, जिनका स्वभाव से लोग डरते नहीं है।
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